शायद अब मैं जीना सीख गया हूँ। Indian Army officer story.

                  शायद अब मैं जीना सीख गया हूँ।

                   

आज से कुछ ३ -४  साल पहले की बात है तब मैं 8 साल का था । मैं बहुत खुश था क्योकि आज से दीवाली की छुट्टियाँ शुरू होने वाली थी और वो सुबह भी बहुत सुहावनी थी । घने कोहरे के साथ गरम कपड़ो को चीर कर मिकल जाने वाली वो ठंडी हवाएं ।
उस दिन तो स्कूल जाने के लिए मैं खुद ही उठ गया और जल्दी जल्दी नहा के आया और अपने फेवरिट तौलिये से सर को पोछते हुए माँ से बोला, "माँ ! आज तो मैं सिर्फ सैंडविच ही ले जाउगा टिफिन मैं , फिर कल से तो छुट्टी और तुमको टिफ़िन भी नहीं बनाना पड़ेगा। " माँ ने भी मुझे देख कर मुस्काया और टिफिन तैयार कर दिया पर मुझे ऐसा लगा की आज मुझसे कुछ छुपाया जा रहा है और यही सोचते हुए मैं स्कूल चला गया।
ठीक 6 घंटे मैं अपनी ब्लू वाली थर्मोस गले मैं लटका कर और गन्दी हुई यूनिफार्म के साथ घर पे लौट रहा था तो घर के बहार रखी एक हरे रंग की कार देखी जिस पर लिखा हुआ था - आर्मी । अब मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था क्योकि छुट्टी पर मेरे प्यारे चाचू घर आये थे । उनके आने पर पूरे हर तरफ त्यौहार का माहौल हो जाता था और हो भी क्यूँ न आखिर हमारे परिवार की शान थे मेजर रुद्रप्रताप सिंह ,51 Engineer Regiment of Bengal Sappers,मेरे चाचू । मैं भाग के अंदर गया और चाचू के गले मैं झूल गया । "इस बार अपने बहुत देर कर दी है , आपके गले लग कर और अपनी चॉकलेट वाली रिश्वत लेने के बाद - ये करन राठौड़ आपसे बात नहीं करने वाला है। " चाचू ने हॅसते हुए वो बड़े लोगो वाली, फॉर्मेलिटी वाली माफ़ी मांगी और अपने बैग से निकाल के बड़ी सी चॉकलेट ,मुझे दी और मैं ख़ुशी - ख़ुशी खेलने चला गया। रात मैं चाचू के साथ ही लेता मैंने उनके आर्मी वाली खूब किस्से सुने और हमने दीवाली  के लिए खूब प्लान्स भी बनाये फिर मैं सो गया। अगले दिन पूरे समय तैयारियां चलती रही फिर शाम को  सबने नए कपडे पहने , और पूजा करने के बाद बहुत कुछ खाने को मिला। हम सबने खूब पटाखे चलाये और मैंने चाचू के साथ मिलके खूब मस्ती की। अब २ दिन बाद शाम को  मैं अपना हॉली डे होमवर्क कर ही रहा था तब अचानक पता चला की चाचू का फ़ोन आया है आज रात ही urgently निकलना पड़ेगा। मैं तो सहम गया और कुछ कह ही न पाया। "आखिर ये कैसा काम जो मुझे मेरे चाचू के पास २ दिन भी न रहने दे। मैं नहीं जाने दूंगा, मेरा मन नहीं कर रहा इस बार उनको जाने देने का।" , खुद से कहने लगा। "माँ ! प्लीज रोक लो न चाचू को , खूब रोया पर किसी ने भी बात न सुनी। फिर अगले २ घंटे के अंदर ही मेरी जिद की वजह से चाचू मुझसे बिना मिले ही चले गए और मैं बिना खाना खाये रोते रोते सो गया।
अगली सुबह माँ ने मुझे किसी तरह मनाया और समझाया , "बेटे, अब चाचू सिर्फ हमारे नहीं है भारत देश की सीमा के रक्षक है। अगर हमने उनको यहाँ रोक लिया तो फिर मेरे बेटू को दुश्मनो की मिसाइल्स से कौन बचाएगा ?" जैसे तैसे सब ठीक हुआ जब शाम को चाचू से बात हुई। सब नार्मल हो गया और मेरा स्कूल भी स्टार्ट हो गया।
फिर .........कुछ दिन बाद जब शाम को मैं टोस्ट खाते हुए टीवी मैं कार्टून देख रहा था तो पापा आये और चैनल बदलने लगे। एक न्यूज़ चैनल लगा ही था की एकदम से चिल्ला चिल्ला के रोने लगे। फिर मैंने देखा तो खबर थी "Breaking News ! नगरोटा मैं हुआ आतंकी हमला , मेजर रूद्र प्रताप हुए शहीद ।" अब तो मैं भी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर रोने लगा और सभी रोने लगे । धीरे धीरे खबर और मातम फैलता गया। रो रो के सबका बुरा हाल था, पापा ने खाना भी छोड़ दिया और बीमार पड़ गए थे पर तब भी रोये जा रहे थे।
फिर आया वो दिन जब चाचू को  बंगलौर लाया गया। वो सब देख कर तो मेरे सीने से दिल ही बहार निकल चुका था पूरे Army traditions के साथ संस्कार हुए।
इसी दुःख और दर्द के साथ लगभग एक महीना बीत गया। और एक दिन डिनर करते हुए मैंने माँ से पूछ ही लिया, " माँ ! तुम तो कहती हो जो लोग अच्छे होते है भगवन उनको हमेशा खुश रखते है। तो मेरे चाचू तो इतने अच्छे थे फिर भी उनको अपने पास बुला लिया हमसे छीन के ।" पहले तो माँ को बड़ी ज़ोर से रोना आ गया फिर एकदम से खुद को सँभालते हुए वो बोली ," बेटे ये वो बलिदान है जो इस देश का फौजी हमारी रक्षा और शांति के लिए देता है।  तुम्हारे चाचू मरे नहीं है बल्कि शहीद हुए है और अब हमेशा हमारे अंदर और हर उस दिल मैं रहेंगे जो इस देश की धरती से प्यार करता है।मैं गर्व करती हूँ अपने देवर पर और धन्यवाद देती हूँ भगवान को जो मुझे ऐसे भारत माँ के शेर के घर भेजा।" माँ की ये सारी बाते सुनके मेरा खाना बंद हो गया और एक अजीब सी हिम्मत ने मेरे सीने को चौड़ा कर दिया।  आज इतने दिनों के बाद मैं बहुत गर्व महसूस कर रहा था और इतने दिन रोने के लिए खुद को बेवक़ूफ़ कह रहा था। मैं सीना तान के माँ के सामने खड़ा हुआ और बोला," माँ! चिंता मत कर , तेरा शेर खोया नहीं है । अब मैं भी फ़ौज मैं जाउगा और अपने चाचू की तरह देश का नाम रौशन करुँगा। माँ ने ख़ुशी के आंसुओं  से भरी आखों के साथ मुझे ज़ोर से गले लगा लिया। और मैं ख़ुशी - ख़ुशी  आँखों मैं सपना लेके सो गया।
आज उस  बात को करीब ४ साल होने आया है, अब मैं  NDA की तयारी कर रहा हूँ। मई अब कभी दुखी नहीं होता और अगर कोई और दुखी होता है तो मैं उसे अपने चाचू  के बलिदान की कहानी सुनाता हूँ। उस रात माँ के साथ हुई उस बात चीत ने मुझे मेरे जीवन का सही रास्ता दिखा दिया। और अब लगता है मैं जीना सीख गया हूँ।
                             


 शहीद आर्मी ऑफिसर मेजर अक्षय गिरीश की सिर्फ 5 साल की
 बेटी नैना ने ARMY का मतलब लोगो को बताया कुछ इस तरह,
“Army is to help us not get afraid. Army is       some who does Jai Hind to everyone,”                                             जय हिन्द,
                                                  by: Avtar Surothiya

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